सब कहते हैं हैप्पी न्यू ईयर
मगर क्या है यह हमारा नव वर्ष
पश्चिमी सभ्यता में लुते पुते हम
पहली जनवरी को मनाने लगे हैं।
वर्ष की शुरूआत भी कुछ एैसी
रातभर जागे नाचे,सुबह गवॉंए सो कर
न पूजा, न पाठ, न आरती का दिया,
न मस्तिष्क पे टीका, न मंगल कामना।
बेड़ा गर्क कर निज सभ्यता का
जा पहुँचे हम क्लब में नाचने
मस्त मगन कुछ एैसे झूमते
होश न रहता, हम गिरते पड़ते।
शिष्टाचार भूल हाथ न जोड़े हमने
न ही चरण स्पर्श किया अपने बड़ों का
आलिंगनबद्ध हुए जाते हम सब बेगानों से
अपनों को छोड़ ग़ैरों से गले मिलते।
नव वर्ष का आरम्भ निद्राहीन करते
वातावरण प्रदूषित करते जाते
अब यही सभ्यता सहकारी बन गई
भूल चले निज संस्कारों को।
परिवार जनों बीच रहना न भाता
बोझ से लगते पिता और माता
मित्रों का संग जी को लुभाता
पैसे वाले ही लगते अन्नदाता।
सिकीलधी
Photo credits: Google images
Bahut hi sahi likhaa hai…….aaj ham nav varsh ke naam par apni sabhyataa aur sanskriti ko bhul dikhaawe ki jindgi jee rahe hain………hamaraa bhi vichar kuchh esi tarah kaa hai….
https://wordpress.com/post/madhureo.com/5597
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Dhanyavaad!
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