पूछो न!

पूछो न  न पूछो तुम मुझसे  मेरे दुखों का कारण सह न सकूँगी  और तुम्हें कुछ कह न सकूँगी  बस ख़ामोश निगाहों से दर्दे दिल को बयॉं करूँगी  पाक आफ़ताब की ओढ़े आबरू  ज़मीन में ही गढ़ सी जाऊँगी  होंठ सीये भी एक अरसा हो चला लफ़्ज़ों ने कब का साथ छोड़ दिया  बस ये ऑंखें हैं जो दर्पण बन मन का कह जाती हैं जो कहना  ही न था  जी रही हूँ बोझ लिए दिल पर डरती हूँ … बाँध टूट न जाए अब सब्र का बिखर न जाए ज़ख़्मी जिगर बह न जाए नयनों से धार चुप हूँ  फिर भी कोलाहल है डर है कहीं फट ही न पड़े दुखती हर नफ़्स जो दबाए हूँ  सिकीलधी 

विश्व हिन्दी दिवस/ World Hindi Divas 2023

World Hindi Day is celebrated on 10th January every year. It is an important day for celebrating and promoting the rich cultural and linguistic heritage of Hindi and its speakers around the world. People come together and celebrate the language and its rich history, and to recognize the important role that it plays in the … Continue reading विश्व हिन्दी दिवस/ World Hindi Divas 2023

छुआ उसने!

छुआ उसने कुछ इस तरह आज जैसे कभी छुआ न था पहले कभी उसकी नज़रों ने छुआ बिजली की तरह और दिल के हर कोने में तरंग सी जागी उसके हाथों बीच समाया मेरा हाथ और जन्नत का हो गया अहसास  वो चुम्बन गालों पर दिया लेकिन… आत्मा की गहराई को थपकी सी मिली  छुआ उसने अपने प्रेम भरे शब्दों से  और मैं ने गंगा सी पवित्रता महसूस की उसके आलिंगन का मीठा अहसास  महका गया मेरी रूह को दे सुखद आभास  छुआ उसने कुछ इस तरह से आज इतराई मैं खुद पे, जागा नया विश्वास  हुई हूँ आज बहुमूल्य उसकी वजह से  जिसने मुझे खुद मुझसे ही बेख़बर किया  सिकीलधी 

माता से प्रार्थना

हे मॉं अपनी आसीस रखना भूलों को राह दिखाना मॉं सब पर अपनी कृपा बनाए रखना तेरे दर पे जो भी आए मॉं हर उस प्राणी पर महर करना मॉं तेरे भक्तों की है विनती याद रखना हमें हर गिनती सिकलधी करती है अरदास सदा रखना चरणों के पास जो कोई आए दासी दास तेरे … Continue reading माता से प्रार्थना

यह इमारतों की है बस्ती!

यह इमारतों की है बस्ती , दूर तलक ईंट पत्थर की हस्ती ! आकाश को ज्यूँ चूमने लगतीं , लम्बी इमारतों की आवारागर्दी! चाहे दिन हो गर्म या हो मौसम में सर्दी , इन लम्बी रहगुज़र में आबादी पलती! ढलती धूप को शांत सा साया, जाने कितनों  के मन को भाया ! आँच दिखाकर हल्की व ठंडी, धूमिल किरनों की सरपरस्ती ! चमक बिखेर मकानों के गिर्द , जैसे स्वयं को उन पर ओढ़ती! इस बस्ती की बात ही निराली , ज्यूँ जादूगर की माया नगरी ! कारों बसों के कोलाहल संग, एक अजब सी ऊर्जा उपजी! हैडलाइटों की सारी झिलमिलाहट , बिल्डिंगों की खिड़कियों पर बरसती !