तुम कहतीं थी न मेरे होने से तुम्हें अच्छा लगता है फिर अब! अब क्या हुआ जो वहीं संग बोझ लगता है तुम नन्ही सी थी तो कभी तुम्हारा हाथ पकड़ और कभी तुम्हें गोद में उठा मैं चलती थी ऐसा न था कि तुम बिल्कुल हल्की सी थी तुम्हें उठा मैं बहुत थकती थी … Continue reading तराज़ू के पलड़े
मॉ
एक शब्द!
स्वेटर! ( मॉं की याद)
ऐ मॉं
मॉं की याद जब भी है आई,
दर्द हुआ इतना की बेटी बिलबिलाइ।
सतगुरू स्वरूप
सतगुरू एक लेता नया आकार एवं बनता अनेक से एक। चोला बदल कर आया फिर से गुरू।
निरंकारी समुदाय की सतगुरू माता सविंदर हरदेव के देहांत पश्चात उनकी सुपुत्री के सहयोग भरे कुछ शब्द पेश हैं
कागज़ के टुकड़े
लोग चले जाते चुपचाप इस जहान से , यादों का कारवाँ पीछे छोड़ जाते हैं।