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ये शरीर!
ये शरीर भी क्या शरीर ये शरीर भी कैसा शरीर कभी बना दर्द की दुकान कभी बनता दवा की दुकान इस के क्या गुण, क्या अवगुण कभी बनता सम्मान का मकान भुलेखे में डाल ह्रदय को ये बन जाता अहंकार का सामान छिड़ जाता सह मान अपमान इसको भाता खुद अपना गुणगान ये शरीर भी क्या शरीर ये शरीर भी कैसा शरीर सिकीलधी
वियोग
मॉं बाप का वियोग कम्बख़्त चीज़ ही ऐसी है, जग भर के रिश्ते हों चाहे जीवन में.... न कोई पिता सम्मान, न कोई मॉं जैसी है कभी शायद वो भी रोए होंगे इस वियोग वश आज हमारी बारी है, बिछड़ना लगता भारी है क्या कल की पीढ़ी भी सहेगी यह सब? कौन जाने यह वियोग किस किस पर भारी है सिकीलधी
Sunshine
The tree opened up it’s eyes To let the sun shine through bright The morning sky gives golden sunrise Through the leaves sparkles daylight Sikiladi
Sunrise 2

Nature Photography is a poetry in itself.
The Expectant Sky

Hichhki हिचकी
दोस्ती
Unhindered!

Cereus
Brahma Kamal flowers in bloom.