तराज़ू के पलड़े

तुम कहतीं थी न मेरे होने से तुम्हें अच्छा लगता है  फिर अब! अब क्या हुआ जो वहीं संग बोझ लगता है  तुम नन्ही सी थी तो कभी तुम्हारा हाथ पकड़  और कभी तुम्हें गोद में उठा मैं चलती थी ऐसा न था कि तुम बिल्कुल हल्की सी थी तुम्हें उठा मैं बहुत थकती थी  … Continue reading तराज़ू के पलड़े