तराज़ू के पलड़े

तुम कहतीं थी न मेरे होने से तुम्हें अच्छा लगता है  फिर अब! अब क्या हुआ जो वहीं संग बोझ लगता है  तुम नन्ही सी थी तो कभी तुम्हारा हाथ पकड़  और कभी तुम्हें गोद में उठा मैं चलती थी ऐसा न था कि तुम बिल्कुल हल्की सी थी तुम्हें उठा मैं बहुत थकती थी  … Continue reading तराज़ू के पलड़े

विश्व कविता दिवस २०२५

महिला काव्य मंच के zoom platform पर केन्या इकाई पर प्रस्तुत की मेरी यह कविता बेहद सराही गई । आप सब से साझा कर रही हूँ । आशा करती हूँ आप सब को भी पसंद आएगी । महिला काव्य मंच केन्या की काव्य गोष्ठी कविता क्या है ? कविता एक एहसास है  जो शब्दों से बुझती … Continue reading विश्व कविता दिवस २०२५