अंतिम सत्य

क्या वह बन गया था मेरा सरमाया ? या फिर मेरी मौत का संदेश था लाया …. असमंजस में थी मैं …. बूझ न सकी ख़ुशी मनाऊँ या…. स्वयं अपने ही मरने का मातम मनाऊँ …..

अंतिम संस्कार

मगर वह जो चिर निद्रा सो रही….. मौत में भी आकर्षित लगती रही …. कितना सुंदर लगता है उस पर शृंगार…. जिन हाथों से कभी पहनाई थी वरमाला …… उन्हीं हाथों से अपनी पत्नी को विदाई वाली पहनाई माला