ब्रह्मकमल / Brahma Kamal

एै ब्रह्मकमल तेरे पत्तों से छलकती 

छवि आती हुई की बहार की

गर्भ धारण लिए तेरे पत्ते 

आशा देते नए संसार की

कलियों के विकसित बोझ लिए 

झूलतीं डालियों ने कई प्रण लिए,

सुंदरता फैलायेंगे इस जग की

मगर अंधियारी रात के तले 

खिलेंगे कमल ब्रह्म देव के

मनमोहक अमृत संचार लिए 

सुगंधित मन लुभावने पुष्प ये

ईश्वरीय ऊर्जा की पुकार लिए 

सुबह का सूरज न भाता इनको

सिमट जातीं यह अपने ही भीतर

बहार तो आएगी, सुगंध महकेगी 

कुछ दिन का इन्तज़ार लिए 

अभी है बाक़ी इन का बढ़ना

नवजात कमल की आशा लिए

सिकीलधी 

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