मॉं तेरी याद

सुबह सवेरे नींद से जाग

जब देखा अपना चहरा

झलक दिखी तुम्हारी एै मॉं

दिल को भा गया ख़ुद अपना चहरा

कल जब मन उदास था

लगता है हल्का सा बुखार सा था

आईने में देखा ऑंखें कुछ लाल थीं

वे यादें उभर आईं, दब तुम हस्पताल में थी

जान न सकी मैं, बता न सकी तुम

मगर मॉं तुम्हारी ऑंखों के किनारे लाल थे

उस दिन मैं छुप कर बहुत रोई

जितना तुमने था सहा

उतनी पीड़ा कैसे सह सकता कोई

याद हर दिन बहुत ही आती है

मॉं तुम जैसा न जीवन में कोई साथी है

कैसे बिन बोले सब समझ लेती थीं तुम

तुम से बात करते ही कम हो जाते थे सब ग़म

पछतावा भी मन को हैरान, परेशान है करता

मॉं तेरी याद से यह दिल कभी न भरता

परदेस की रही हम दोनों की दूरी

बातें बहुत सी रह गईं अधूरी

निर्दई समाज ने कैसी दी बेटियों को मजबूरी

मगर विधाता ने संग ही दी क्ष्रद्धा व सबूरी

काश कि जग दाता करके यह तमन्ना पूरी

लौट आओ तुम जहाँ में मॉं, कमी यह हो जाए पूरी

कुछ तुम्हारी शिकायत व डाँट सुन सकूँ

कुछ अपने गिले शिकवे कह सकूँ

साँझा कर लें फिर से वे ढेरों सित्तम

कुछ हंस कर, कुछ आँसू बहाकर तुम हम

एक बार, बस एक बार गले मिल दर्द करें कुछ कम

हाल-ए-दिल बयॉं करें, रंजिशें हो जाए कुछ कम

सिकीलधी

8 thoughts on “मॉं तेरी याद

  1. माँ – पिता के समान दुनिया में दूसरा कोई नहीं होता।
    उनका प्रेम निस्वार्थ होता है ।हम अपने जीवन में उन्हे कभी नहीं भूल सकते हैं ।
    ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति 🙏🏼😊

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  2. जब देखा अपना चहरा
    झलक दिखी तुम्हारी एै मॉं
    दिल को छूनेवाली सत्य पंक्तियाँ।👌👌

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