स्थिरता Sthirta

स्थिरता

शांत मन ले भीतर झाँका

किया प्रभु का नाम सिमरन

व्याधी तकलीफ़ सब दूर हुई

जब से थामा स्थिरता का दामन

अब न कोई चिंता सताती

न ही टीस कोई ह्रदय दुखाती

जब से जाना मैं ने स्वयं को

और है थामा स्थिरता का दामन

जीवन केवल एक कर्म क्षेत्र है

अभिनय निभाना केवल धर्म है

फिर क्यों होगा यह मन विचलित

जब स्थिरता जीवन के अंग संग है

स्थिरता

जो हो रहा, वह क्षण भंगुर है

जो न हुआ, वह होना ही न था

फिर क्यों हो आशा व निराशा

जब एकत्व मन स्थिरता चाहता

जो आया है उसको जाना ही होगा

यह जान समझ जीवन जीना होगा

हर रिश्ता निभाकर जग तजना होगा

स्थिरता वाला मन रख चलना होगा

ख़ुशी व दुख जब हों एक समान

कुछ पाना, कुछ खोना न दे गुमान

फीका व मीठा भाए सब पकवान

एैसी स्थिरता हो हमारे मन प्राण

बचपन से जब दूरी आई

जवानी वाली देह भी त्यागी

बुढ़ापे में जा कर किया समर्पण

स्थिर हो एक चित्त देखा मन दर्पण

सिकीलधी

One thought on “स्थिरता Sthirta

Leave a reply to अनिता शर्मा Cancel reply