नए पटल पर शादी

नए पटल की शादी

मिले न मिले हम तुम सब से

साकार तो आख़िर हो ही गया 

दिल के पर्दे दिल में बसा कर

ज़ूम पर सही, दीदार हो ही गया 

रिवाजों का यह नया सिलसिला 

वर्चुअल संगीत भी संपन्न हो ही गया

वो जमाई जी से हुई मस्ती, 

दुल्हन की  मॉं ने सर पे सँभाली मटकी

मौसी के मस्त चुटकुले, मामी का खिला सा चेहरा

बड़ी बहन का बारी बरसी वाला तड़का 

छोटे भैय्या का भी दिल था महका

मामा की गरम चाय की प्याली, 

और फूफा जी के हाथ में जाम

कहीं तो दोपहर का समां था,

और कहीं चॉंद आसमॉं पर निखरा था

हम सब करते हँसी व ठठोली

एक अलग पटल पर मिले हमजोली

बुआ मंगल गीत, ख़ुशियों के सुनाए

काकी काका ने दुआओं भरे गीत गुनगुनाए

थी ऑंख भी कुछ नम, 

बिटीया के चले जाने का है सित्तम

मगर ह्रदय हुआ प्रस्सन,

अपने साजन संग जा बसेगी दुल्हन

प्यारी बिटिया का हुआ कारिज सुखमय,

सदा हो लाढो रानी का जीवन आनन्दमय

धीमी चाल चलते वह स्मॉं आ ही गया, 

कोविड के समां वाला विवाह हो ही गया

रिश्ते नाते ज़ूम ही जोड़ता व निभाता

परिवर्तन एक नया हो ही गया

कोर्ट में ही अब ब्याह हो रहे,

धर्म का तक़ाज़ा इन्तज़ार में बैठा रहा

शादी वाले फ़ेरे कुछ तो हो रहे,

मगर अपनों का गले मिलना रह ही गया

वर्चुअल मेहंदी का निमंत्रण देखकर,

हम ने भी दूर देस अकेले मेहंदी लगा डाली

रंग दिए हाथ मौसी, ताई, बुआ ने परदेस में

बिटीया को बल्लैयां दे दुलार कर न पाईं

फिर भी एक लहर ख़ुशी की हर मन छाई,

जब पर्दे पर सुहाग के जोड़े में बिटीया सज के आई

दुल्हे के  रौशन पेशानी पर दमकता टीका

दुल्हन की सिन्दुर भरी माँग सजी सी

ज़ूम पर ही आशिर्वादों की लड़ियाँ छा गईं

फूलों की वर्षा करते, यह कसक रह सी गई

बिटीया जो कल तक अपनी थी, 

सास के मन को आज भा गई

सिकीलधी

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