देशद्रोह

देशद्रोह

अजब सा समां अब आ गया

देश भक्त देश का घातक हो गया

जो थे शब्द अनाहत गूँज मचाते

वे ही आज अपशब्द बोल सुनाते

करते अपमान उस तिरंगे का 

जिसे था माना अपनी आन बान

लानत है एैसे वीरों की नियती पर

जो कभी हुआ करते थे भारत में की शान

कलंकित हुआ सम्मान तुम्हारा

‘बोले सो निहाल’ का नारा न लगता प्यारा

दहशतगर्दों कुछ तो शर्म करो तुम

कृष्क नहीं तुम, तुम तो निकले हैवान

क्या देश मिटा कर कोई है जीता?

क्या देश की आबरू बचाना नहीं तुम्हारा काम?

हुड़दंग मचा, तबाही फैला, दे गए तुम अपनी पहचान

जाने अनजाने अपने ही गुरुओं का तुम कर गए अपमान

कैसे भूल गए नानक, गोविंद, शिवाजी, रानी लक्ष्मी के पैग़ाम 

कैसे भारत मॉं के सपूत हो, द्रोह विद्रोह की उड़े तुम उड़ान

कैसे पूर्ण होगा तुम्हारा अधिकार

गणतंत्र स्वाधीनता का कर तिरस्कार

सिकीलधी

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