कृष्णा

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जमुना किनारे, साँझ सखारे
यह मन कान्हा कान्हा पुकारे
आजा रसिया , हे मन बसीया
तोहे   मोरी  चाह  पुकारे
राधे प्यारी, बाट निहारे
दरस दिखा, नैनों के तारे
तुझ बिन विचलित मेरा मन
वीरॉ  हूँ  मेले  में  सारे
क्यों ये उदासी, क्यों यह तड़पन
तुझ बिन नीरस कों यह जीवन
ख़ुद ही ख़ुद को यह समझाया
झाँक ए मन तू अपने भीतर
गद गद सी मैं हो गई तब
वीणां सी बजी कानों में जब
पुलकित हुआ यह नीरस मन
सिंहरन सी फैली हर अंग में
मन मन्दिर में बसा है कृष्णा
मिट गई मेरी सगरी तृष्णा
राधा बॉंवरी तेरी चाह में
तन्हा नहीं किसी भी राह में
श्वास श्वास में कृष्णा प्यारे
सज गए मेरे साँझ सखारे
गउएँ तेरी वृन्दावन में
मोर मुकुट वन उपवन में
वनशी बजी जमुना किनारे
कान्हा न्यारे , दिल के दुलारे
ह्रदय भीतर तू कृष्णा प्यारे
अब कहाँ तू, और कहॉं मैं
मैं दुनिया में भी बेदुनियॉं
मैं तुझमें तू मुझमें रसिया
राधा ख़ुद मैं कान्हा निहारे
लोक लाज सब तज कर राधा
तेरी हो गई सब छोड़ बहाने
कृष्णा कृष्णा कृष्णा कृष्णा
राधा की हर श्वास पुकारे।।
सिकीलधी

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