बादलों का शहर

FF8C77FF-78AE-4F8B-9D50-F7ED843C1F2D

 

बादलों के शहर से जो मैं चली

अजब लगी वहाँ की हर एक गली

 

कभी दिन दहाड़े मिलता अन्धियारा

कभी रातों में भी लगता उजियारा

 

कहीं क़दम रखते ही मैं फिसलती

कहीं ऊँची उड़ान सी ले मैं उचकती

 

कोई बदली छन छन कर बिखरती

कोई घनी चहुँ ओर जा पसरती

 

पर्वतों की मानिंद कोई ऊँचाई दिखती

वहीं गहरी निशा सी चादर सी झुकती

 

बादलों के शहर के घर भी अलग से

कभी बसती संग होते, कभी तन्हा रहते

 

कहीं गरज घनघोर आकाश को चीरती

कहीं बिजली का आलिंगन सा ले लेती

22E95A7C-BAD5-4D3D-B822-F0DB96518C9B

एक पल लगता मैं हवा पर चलती

अगले क्षण ओस की बूँदों पे सरकती

 

कोई बादल मटमैला, कोई राग सुनाता

और कोई बादल चाँद को जा पकड़ता

 

बादलों के शहर का अत्यंत अजब चहरा

कभी पवित्र उज्जवल, कभी स्याहवर्ण

 

कोई बादल गरज फिर बारिश बरसाता

कोई हल्की बूँदों से रोमांचक ऋतु लाता

 

अपने होंठों से चूमता पेड़ पौधों को

बादल दिन प्रतिदिन नहला कर जाता

 

ममतामयी बादल हर प्राणीं पर जल छिड़का

देख भाल दूर देस से निष्पक्ष रूप से करता

 

बादलों के शहर की अनोखी सी कई बातें

अचरज लगतीं पर बहुत पहचानी सी लगती

 

कभी यह बादल पंख फैलाए उड़ते घूमते

कभी नदिया की भाँति  से धारा में बहते

 

स्नेह चुम्बन दे सूखी धरती को प्रेम वश

अश्रु छलका अपने हरियाली भेंट कर जाते

 

BFB02887-48FD-47C7-934B-73DC09A31F93

जब जी जैसा होता हो इनका

उसी प्रकार का भेस वे जा बदलते

 

कभी नभ में कोई हाथी घोड़ा सा दिखता

कभी साईं बाबा या शिव जी का रूप झलकता

 

कितने ही प्रेमी चाँद सितारे बिसरा कर

इन बादलों को तकते रहते निहारते।

सिकीलधी

 

One thought on “बादलों का शहर

  1. कोई बादल शेर जैसा कोई हाथी जैसा तो कोई विशालकाय दैत्य की तरह दिखते।

    बादलों की दुनियाँ भी अजीब है। खूबसूरत रचना।👌👌

    Liked by 1 person

Leave a comment