A Niche!

A nursery rhyme is a form of poetry that is often simple to learn. This rhyme is inspired by the child in picture. Her innocence and perky mannerisms often inspire a poetry. She sat on the wall And called herself Humpty Dumpty No, She didn’t fall like him But she had fun and joy She … Continue reading A Niche!

वह लौट के घर को आई!

जब वह लौट के घर को आई मन के भाव मैं समझ न पाई न फूलों से स्वागत, न कोई ढोल बस! कई मिनटों तक गले लग पाई न वह रोई, न मैं रोई! मगर हम दोनों हंस भी न पाईं  अपनी ही आयु से कहीं बड़ी हो चली थी  मेरी प्यारी सी गुड़िया जाने कैसे भाव छिपा रही थी उसके लौट आने से एक अजीब सी चुप्पी थी छाई  अश्रु भी आँखों से खेल रहे थे लुकन छुपाई हर कोई अपने भावों से झूझ रहा था शायद सन्नाटा इतना भारी कि मैं चाह कर भी सिसक न पाई जब वह लौट के घर को आई सभ्य समाज की असभ्य बेड़ियाँ तोड़ आई ह्रदय था घायल, फिर भी सुकून था अपनी बिटिया को सुरक्षित मैं वापस लिवा लाई उसे निकाल आत्मकामी अत्याचारिता से चैन के चंद श्वास तब मैं ले पाई  अभिमान हुआ स्वयं अपने इस कार्य पर समाज के मानदंडों को तोड़, सिर उठा जी पाई समाज के ठेकेदारों, मैंने सुनी सगरी जग हंसाई  देती हूँ हर एक की बेटियों की दुहाई  है परवाह आज भी अपनी ही गोद की ज़ख़्मी ही सही, ब्याहता बेटी घर लौट आई उसके कुशल की कामना सदा मेरे मन समाई उसकी हर पीड़ा से मेरी आत्मा बिलबिलाई  बड़े ही संस्कारों से की जिसकी परवरिश उसी द्वारा अब संसार को नए संस्कार दिखा पाई बेटी अपनी अपना ही स्वाभिमान है लोगों  तज न देना उसे जान कर अमानत पराई बोझ न समझो उस अपनी जनी को समय रहते हाथ बड़ा कर बनना उसके सहाई  जली कन्या से सुरक्षित कन्या भली होती है मृतक पुत्री से घर लौटी पुत्री भली होती है पीड़ित ब्याहता से कुशल बिटिया भली … Continue reading वह लौट के घर को आई!

कब! जाने कब!

बेटियाँ कब! जाने कब वह बड़ी हो जाती हैं  कल की फुदकती बच्चियाँ सयानी हो जाती हैं  नन्हे पैरों की छन छन पायल आँगन में राग सुनाती है  छोटे छोटे हाथों से हम बड़ों को थामने लगतीं हैं  कब! जाने कब वह बड़ी हो जाती हैं  माँ की देखा देखी फ़ैशन थीं सीखतीं  पर्दे पीछे … Continue reading कब! जाने कब!

I Pity!

PITY! I Pity! I pity upon her The woman with rocketed ego She engulfed her own into the fold And in turn victimized them Forgive her Hey Ishwara ! Forgive her ! For she’s erred unknowingly  With her self worth escalated… Only in her own eyes 👀 Sikiladi She’s blinded herself from a lot of cries  … Continue reading I Pity!

खुशाली!

बेटी मेरी अपनी हो या फिर किसी और की- बेटी ही होती है । यह कविता मेरी सखी अरूना की ओर से उसकी बेटी खुशाली के लिए एक प्यारी सी भेंट । जन्मदिन मुबारक हो खुशाली ।