यह इमारतों की है बस्ती!

यह इमारतों की है बस्ती , दूर तलक ईंट पत्थर की हस्ती ! आकाश को ज्यूँ चूमने लगतीं , लम्बी इमारतों की आवारागर्दी! चाहे दिन हो गर्म या हो मौसम में सर्दी , इन लम्बी रहगुज़र में आबादी पलती! ढलती धूप को शांत सा साया, जाने कितनों  के मन को भाया ! आँच दिखाकर हल्की व ठंडी, धूमिल किरनों की सरपरस्ती ! चमक बिखेर मकानों के गिर्द , जैसे स्वयं को उन पर ओढ़ती! इस बस्ती की बात ही निराली , ज्यूँ जादूगर की माया नगरी ! कारों बसों के कोलाहल संग, एक अजब सी ऊर्जा उपजी! हैडलाइटों की सारी झिलमिलाहट , बिल्डिंगों की खिड़कियों पर बरसती !