किताबों के ढेर, ढेर सारी किताबों के ढेर। कुछ ऐसा ही दिखता था जब विमल अपनी नन्ही सी आयु में अपने पिता का किताबें जमा करने का शौक़ देखती थी। वह ढेर जिसे वह ढेर कहती थी, बहुत ही सलीक़े से बैठक की बड़ी सी कॉंच की अलमारी में सहेज कर रखीं पुस्तकें थीं । … Continue reading पहचान
भाषा
बलात्कार
सभ्यता असभ्यता जाने कैसे जाने अन्जाने रूप में हमारे ही हाथों गेंद की तरह उलझती दिखती है...........