तराज़ू के पलड़े

तुम कहतीं थी न मेरे होने से तुम्हें अच्छा लगता है  फिर अब! अब क्या हुआ जो वहीं संग बोझ लगता है  तुम नन्ही सी थी तो कभी तुम्हारा हाथ पकड़  और कभी तुम्हें गोद में उठा मैं चलती थी ऐसा न था कि तुम बिल्कुल हल्की सी थी तुम्हें उठा मैं बहुत थकती थी  … Continue reading तराज़ू के पलड़े

धरती मॉं

हम धरती पे जन्मे धरती पर ही बोझ बने और फिर धरती में ही समाए धरती हमें प्यार से बुलाए अपनी आग़ोश में लेती सुलाए प्रियजन चाहे रहते रोते रुलाए उनको यह बात कौन समझाए जिसे जानते पीड़ित असहाय और भरते सिसकीयों भरी हाय उनका अपना अब लौट कर धरती मॉं की गोद में सो … Continue reading धरती मॉं