https://youtu.be/Jjgzi72uDqU?si=Ta_8d_0wKCz3RJRq केन्या के नैरोबी शहर में हिंदू परिषद द्वारा एक सांस्कृतिक सम्मेलन मनाया गया जिसके तहत एक कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ । कवि सम्मेलन का शीर्षक था “नवरस के रंग, कवियों के संग “ जिसमें करुण रस दर्शाती यह कविता “अंतिम संस्कार “ सुनाई गई । सिकीलधी
grief
Samuhik Shraaddh Tarpan 2024
Published in The Asian Weekly.
ईश्वर
Memories form an important role in each person's life. The memories of parents are hurting as well as pleasant but the memory of a parent's passing away never seem to fade away. The poem depicts the pain of a daughter reminiscing her father's death.
मॉं
Our Ancestors
As per Hindu spiritual tradition a period of fifteen days is set aside for dedication towards ancestors where each family revisits the memories of family ancestors and performs various ritualistic activities.
Hasmukh Patel: A tribute!
Kenya mourns the passing away of a business tycoon cum great philanthropist Hasubhai, the owner of Mombasa Cement. In his life journey this God sent man touched hundreds of thousands of lives with his caring generosity. A people’s person he was a gifted giver to the society at large.
वह लौट के घर को आई!
जब वह लौट के घर को आई मन के भाव मैं समझ न पाई न फूलों से स्वागत, न कोई ढोल बस! कई मिनटों तक गले लग पाई न वह रोई, न मैं रोई! मगर हम दोनों हंस भी न पाईं अपनी ही आयु से कहीं बड़ी हो चली थी मेरी प्यारी सी गुड़िया जाने कैसे भाव छिपा रही थी उसके लौट आने से एक अजीब सी चुप्पी थी छाई अश्रु भी आँखों से खेल रहे थे लुकन छुपाई हर कोई अपने भावों से झूझ रहा था शायद सन्नाटा इतना भारी कि मैं चाह कर भी सिसक न पाई जब वह लौट के घर को आई सभ्य समाज की असभ्य बेड़ियाँ तोड़ आई ह्रदय था घायल, फिर भी सुकून था अपनी बिटिया को सुरक्षित मैं वापस लिवा लाई उसे निकाल आत्मकामी अत्याचारिता से चैन के चंद श्वास तब मैं ले पाई अभिमान हुआ स्वयं अपने इस कार्य पर समाज के मानदंडों को तोड़, सिर उठा जी पाई समाज के ठेकेदारों, मैंने सुनी सगरी जग हंसाई देती हूँ हर एक की बेटियों की दुहाई है परवाह आज भी अपनी ही गोद की ज़ख़्मी ही सही, ब्याहता बेटी घर लौट आई उसके कुशल की कामना सदा मेरे मन समाई उसकी हर पीड़ा से मेरी आत्मा बिलबिलाई बड़े ही संस्कारों से की जिसकी परवरिश उसी द्वारा अब संसार को नए संस्कार दिखा पाई बेटी अपनी अपना ही स्वाभिमान है लोगों तज न देना उसे जान कर अमानत पराई बोझ न समझो उस अपनी जनी को समय रहते हाथ बड़ा कर बनना उसके सहाई जली कन्या से सुरक्षित कन्या भली होती है मृतक पुत्री से घर लौटी पुत्री भली होती है पीड़ित ब्याहता से कुशल बिटिया भली … Continue reading वह लौट के घर को आई!
विरासत
ओढ़ लेती हूँ आज भी वो ग्रे वाली पुरानी शाल महसूस करती हूँ उसमें तुम्हारा छुपा सा गहरा प्यार शाल तो अनेकों है मगर इस ग्रे वाली सम कोई नहीं न यह पश्मीना, ना शाहतूश न ओश्वाल, न कोई ब्रांड Sikiladi न ही महँगी कड़ाई, न लेटेस्ट ट्रेंड फिर भी मन को भाती हर दिन उसे ओढ़ एक गर्म सी ठंडक मिलती हाँ ठंड से बचाती प्यार की गर्माईश ह्रदय को ठंडी राहत मिलती आपके ममत्व की गर्मी मिलती वहीं ममत्व जो आपने जाने कितनों को दिया और उन कितने ही अजनबियों बीच मैं, तुम्हारी अपनी, औलाद की औलाद भाग्यशाली हूँ जो मैंने पाया आपका वह अनकहा सा प्यार शाल तो केवल वस्तु निमित्त है विरासत में पाया आपका दुलार व संस्कार वह सेवा वाली तबियत Sikiladi वह सत्संग वाली फ़ितरत और वह सिमरन करने वाली वसीयत आप कहतीं थीं न, आत्मा का भोजन है ज्ञान और सेवा, सत्संग, सिमरन में बसें हो प्राण बस शायद वहीं कुछ कुछ मेरे हिस्से आया आपकी याद व सद्गुरू का साया Sikiladi इस गुप्त ज्ञान का रहस्य कोई विरला ही जान पाया वह प्रात: अमृतलाल उठ सिमरन करना वह तुम्हारा भक्ति रस के गीत गाना जिसका कभी मैंने किया उलाहना व मारा ताना वहीं सब आज बन गया है मेरे जीवन का ख़ज़ाना इतनी सी दास्तान, इतना सा ही अफ़साना शाल देना तो शायद था फ़क़त एक बहाना उसमें बुन दिया था आपने संस्कृति का निभाना दादी अम्मा धन्यवाद करती हूँ आपका मेरी ही बेटी बन चुना आपने फिर मेरे जीवन में आना कोई माने न माने, मैंने तो है यह जाना आपका मेरा नाता है सदियों पुराना सिकिलधी https://youtu.be/d_k0iR1ENrw?si=22vYKgCZT1vtydE0