बेटियाँ नन्ही सी परियों समान यहाँ वहाँ फुदकती, घर आँगन की रौनक बनतीं और फिर यकायक इतनी बड़ी बन जाती है कि स्वयं अपने ही माता-पिता को चकित कर जाती हैं ।
विश्व हिन्दी दिवस २०२५ के अवसर पर बेटियों को समर्पित यह कविता केन्या के भारतीय दूतावास में सुनाई गई थी ।