उसकी यादों का आलिंगन


जब वह थी तो मैं बेपरवाह थी
बेपरवाह थी क्योंकि मेरी माँ थी

कुछ समझ न आता, कोई दुविधा होती

बस झट से उँगलियों से उसका नंबर मिलाती 

हर समस्या का समाधान थी मॉं Sikiladi

हर दुविधा का निष्कास थी मॉं 

उसके घरेलू उपायों में थी मेरी तबियत 

हर रोग, हर दर्द का उपचार थी मॉं 

अब लगता है कि जब फ़ोन करती थी वह

और बेवजह व्यस्तता जताती थी मैं 

कितनी गलती करती थी मैं Sikiladi

उसका दिल दुखाती थी मैं 

अब वही सिलसिला चल रहा है 

बस अब सामने मॉं नहीं, मेरे बच्चे हैं 

Sikiladi हर संकट में, हर दुविधा में 

वे मुझसे उपाय तलाशते हैं 

अब समय की कमी तो रही न मगर

अपने ही जने हुए मुझ से अधिक व्यस्त से है 

उनका हर पल ज्यूँ बेशक़ीमती सा है 

और मैं विवश हो इन्तज़ार में बैठी हुई 

फिर सोचती हूँ काल चक्र भी कैसा है 

कल जहां मैं थी आज मेरी संतान है

और मुझे भी तो मॉं वाली पदवी मिली है 

जैसा देखा था उसको करते हुएSikiladi

वहीं सब मैं आज कर जाती 

हॉं, मॉं जैसी आदर्श वादी न सही 

किन्तु कुछ कुछ उसके पद्ध चिन्हों पर चल जाती

परिवार को न केवल पालने लगी हूँ 

मगर उसकी भाँति जोड़ने भी लगी हूँ 

जब दर्द दफ़्न कर सीने में, मुस्कुराती हूँ 

दर्पण भी मेरे चेहरे में उसकी झलक दिखाता है 

हर सुख संपन्न होते हुए, खुश आबाद क्षणों में भी

बस एक कमी सी पाती हूँ Sikiladi

मॉं के संग न होने पर , तन्हा खुद को पाती हूँ 

फिर दूजे ही क्षण इस विश्वास  में जीती हूँ 

वह मेरे भीतर समाई है, 

कभी मेरी उँगलियों से पकाती दिखती है 

Sikiladi कभी मेरे वस्त्रों में वह सुगंध सी समाती है 

कभी अपनी ही ऑंखों की नमी में महसूस होती 

कभी सुकून के क्षणों में ह्रदय को तृप्त करती है 

कभी याद सुहानी बन तितली सी वह

खिड़की के किनारे आ बैठती हैं Sikiladi

और कभी चाय की चुस्की लेते हुए मेरे होंठों को छूती है

कभी चिड़िया के सुरों द्वारा कानों में रस घोलती है 

मॉं जीवन के हर मोड़ पर 

न होकर भी हमेशा होती है 

गौरव होता है खुद ही स्वयं पे

उसका जीवित अंश होने पर

कभी रूप में, कभी ढंग में 

जीवन के अनेकों रंग में Sikiladi

ह्रदय प्रफुल्लित होता है 

तनिक मात्र भी अपनी मॉं जैसा होने पर

नतमस्तक है मेरा तन मन

उसकी यादों का पाकर आलिंगन

लाखों प्रणाम तुझे ऐ मॉं

लाखों प्रणाम तुझे ऐ मॉं

सिकीलधी

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