वो यादें!

वो यादें जो सिमट तसवीरों में

मुझसे बातें करतीं हैं 

कुछ दर्द का एहसास देतीं हैं 

कुछ लबों पे मुस्कान बनती हैं 

हसीन चेहरे आफ़ताब पर

तारों के बीच झलकते हैं 

वो यादें जो सिमट ख़्यालों में 

मॉं बाप के लिए तड़पती हैं 

एक आग़ोश का मरहम चाहती है 

ज़रा पेशानी पे हाथ बन फ़िर जाती हैं 

वो बचपन वाले झूले व गुड्डे गुड़ियॉं

वो रंगीन गोली की अख़बारी पुड़िया 

वो यादें बीते हुए दिनों की 

सखियों संग मिल बैठ बतियाने की

दादी नानी के लाड़ दुलार की

भाई बहनों संग अल्हड़ बन जीने की 

मदमस्त सा जीवन जीने की

अब बिसरी चाहना बन जाती हैं 

वो यादें जो ख़ुश्बू बन पकवानों की

मॉं के हाथों मिले निवालों की

पापा के जबरन पिलाए दूध की

मित्रों के स्कूल टिफ़िन की चाह की

अब उम्र की अलग सी दहलीज़ पे

बीते दानों में अक्सर ले जातीं हैं 

सिकीलधी 

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