ईंसानियत

सो गई इंसानियत, दिन में रात हो गई 

बेदर्दी की आज एक नई दास्तान हो गई

खिन्न हुआ मन, हरकतों से बू आने लगी 

घिनौनी शरारत एक, किसी की जान ले गई 

जाग उठी हैवानियत, इब्तिदा अब हो गई 

क्रूरता इतनी की, जी मिचलाने की हालत हो गई 

दूजे को कहते हैं जानवर, पशुत्व प्रकीर्ति हो गई 

तुमसे भले तो पशु, दुख सहने की आदत हो गई 

शर्म करो हे दुष्ट मानव, बुरी तेरी फ़ितरत हो गई 

मनचली मस्ती तेरी बहुत ही घातक हो गई 

निर्दोष की हत्या तेरे सिर है, अजन्मे शिशु की आह लगेगी 

कर गया कितना बड़ा पाप तू, मानवता बदनाम हो गई 

सिकीलधी 

9 thoughts on “ईंसानियत

  1. दर्दनाक है लेकिन हर एक शब्द मानवता पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते है।

    “किसी की जान ले गई….जाग उठी हैवानियत, इब्तिदा अब हो गई”
    बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ है ये🙏

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