सीखी न वह/ Seekhi na woh!

आज के #EmbraceEquity वाले समय भी कुछ ग्रहणियाँ ह्रदय में अश्रु छिपा बाहरी तौर से मुस्कुराती दिखती है । यह कविता उन स्त्रियों को समर्पित है जिन्होंने खुद को कहीं खो दिया है । क्या आप को यह कविता दिल से लगेगी? क्या यह कहानी आपकी है? क्या यह आपकी किसी अपनी की याद दिलाती हैं? क्या आप की मॉं अथवा दादी/नानी भी इस पीड़ा से गुज़र चुकीं हैं? अपनी टिप्पणी अवश्य साझा कीजिएगा ।

बर्सी का दिन

फिर आ गया आज वह दिन क्ष्राद्ध का महीना और बर्सी का दिन हर वर्ष यही तारीख़ जब आती दर्द भरी कुछ यादें ले आती डैडी आपका हम सब को छोड़ जाना जहाँ से दूर अपना जहाँ बनाना और फिर बस यादों की सीमा में बस जाना हुए तेइईस साल जब आप हुए रवाना मेरे … Continue reading बर्सी का दिन