
क्या लिए चलती हो ?
उसकी बिल्ली ने देखा, समझा व पूछ ही लिया:
क्या लिए चलती हो
इस भारी सी संदूक में ?
जिसके बोझ तले झुकती हो
तुम बहुत थकी लगती होSikiladi
बिल्ली के प्रश्न के उत्तर में :
वह बोली, हॉं थकी बहुत हूँ
संदूक पुराना, बेहद सयाना
समेटे कई यादों का अफ़साना
जो खोल जाती नैनों का पैमाना
कुछ बचपन के क़िस्से, मेरे हिस्से Sikiladi
वो बबूल का पेड़ और छुपन छुपाई
कोई तस्वीर निकलती आत्मा को घिसते
कुछ ममता के बिछौने दिल पे छपते
सखियों संग बीते पलों का संगम
दहलीज़ पर बजती पायल की रुनझुन
माँ बाबा की झिड़क, बच्चों की चहक
वो जैस्मिन के प्यारे फूलों की महकSikiladi
कुछ शरीर की झुर्रियों की लकीरें
माथे की शिकन वाली बेमतलब दलीलें
कुछ प्रेम, कुछ दर्द भरी अदृश्य ज़ंजीरें
वे चहेते कपड़ों व स्वादों की तदबीरें Sikiladi
बहुत कुछ है समाया इस सयाने संदूक में
बचपन, यौवन, वृद्धावस्था के अनेकों चिन्ह
कमर का दर्द व अपनों के व्यवहार सर्द
अंगना की किलकारी, मस्तिष्क की कलाकारी
हर दिन का एक नया बोझ व थकनSikiladi
हर त्योहार का मनाना व अपनों का अपनापन
कभी मंद कभी तीव्र गति से चलती धड़कन
अपने बच्चों में ढूँढना अपना खोया बचपन
यह सुन कर बिल्ली बोली :
अरे, यह तुमने क्या कर रखा है?
नए कदमों को पुरानी यादों से बांधे रखा है
तोड़ कुंडी अतीत के संदूक की sikiladi
उड़ा डालो उन यादों को हवा में
और हो जाओ मुक्त इस संदूक के बोझ से
खुल कर जीयो अपना जीवनsikiladi
ख़ाली हाथ ही तो जाना है एक दिन
सफ़र आसान होगा इस भारी संदूक बिन
vahhh ❤️
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bahut sunder aur stylised verse writing…
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धन्यवाद इस कविता को पसंद करने के लिये
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Nice post 💯🩵
🌸🌼🌷🌹
Blessings from 🇪🇸
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