सिंधीयों को उनकी कुर्बानी का क्या सिला मिला । लेखक-संजय वर्मा

The pain of the community is barely understood by others as people tend to notice only the opulent few.

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चेटीचंड अब एक धार्मिक उत्सव ही नहीं ,सिंधु संस्कृति और अस्मिता का प्रतीक पर्व भी है ! लाजमी है कि आज के दिन देश को सिंधियों की कुर्बानी को जानने समझने की कोशिश करना चाहिए ।

उन्होनें कोई सवाल नहीं पूछा… ! ये भी नहीं , कि जिस सफर पर उन्हें भेजा जा रहा है , उसकी मंजिल कहाँ है । वे बस उठे , और चल दिये । ताकि आपकी आजादी की लड़ाई का आखिरी पन्ना लिखा जा सके । वे बस चल दिये, अपने खेत-मकान, जमीन-जायदाद अपने मंदिरों, पीरों-फकीरों ,अपने गली चैबारों ,अपनी नदियों ,अपने सहराओं को छोड़कर । वे जानते थे कि ये एक मुश्किल सफर होने वाला है और सफर में वे बस उतना ही समान अपने साथ रखना चाहते थे जितना जिंदा रहने के लिये जरूरी हो । अपनी किताबे अपनें गीत, लोरियाॅ, संगीत, बाजे सबकुछ जैसे एक ‘एक्स्ट्रा बैगेज‘ था इस सफर मे ।…

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