मेरा सम्मान

जब अख़बार में नाम छपता है मेरा, और तस्वीरों सहित ज़िक्र होता है ! तब उन्हें भी मुझ पर गर्व होता दिखे , मेरी सफलता उन्हें अपने जीवन का अंग लगे।

ये शरीर!

ये शरीर भी क्या शरीर ये शरीर भी कैसा शरीर कभी बना दर्द की दुकान कभी बनता दवा की दुकान इस के क्या गुण, क्या अवगुण कभी बनता सम्मान का मकान भुलेखे में डाल ह्रदय को ये बन जाता अहंकार का सामान छिड़ जाता सह मान अपमान इसको भाता खुद अपना गुणगान ये शरीर भी क्या शरीर ये शरीर भी कैसा शरीर सिकीलधी

हमारे पूर्वज

हमारे पूर्वज वह सब हमारे पूर्वज हैं जो हम से पहले विदा हुए है हमारा कर्तव्य कि हम उनके लिए प्रार्थना करें दिलों में बसते कुछ ही मगर छाप अनेकों कि भीतर लिए चलो हम अपना कर्तव्य पालन करें पूर्वजों की मुक्ति का संकल्प करें याद उनकी दिल में धरें ..........