एैसी एक वसीयत तुम कर जातीं नाम मेरे तुम्हारे गुन कर जातीं जिन से थी तुम्हारी पहचान एै मॉं मैं बस तेरे आँगन की एक हूँ क्यारी याद हैं आतीं बहुत ही मुझको बातें तुम्हारी वह प्यारी प्यारी जो थीं कभी सिखलाई तुमने उन बातों पर दिल जाता बलिहारी सिकीलधी
वसीयत
जीने का सलीक़ा

मॉं की याद दिल करे फ़रियाद काश बहुत से शेष रह गए