हर बेटी के मॉं बनने तक… उसकी राहों में फूल बिछाएँ …, हर मॉं की संतान को ….. सम दृष्टि से समता व दुलार दे पाएँ ….,
बेटी / Beti

हर बेटी के मॉं बनने तक… उसकी राहों में फूल बिछाएँ …, हर मॉं की संतान को ….. सम दृष्टि से समता व दुलार दे पाएँ ….,
https://spotifyanchor-web.app.link/e/neRCrixzivb आज भाभी के हाथ लगी कुछ ऐसी तस्वीरें जिनका रंग कुछ उखड़ा सा और किनारे फटे हुए से कुछ दरारों से ढँकी हुईं कुछ के कोने कतरे हुए फिर भी न जाने कैसी कशिश हुई उन तस्वीरों को देखकरsikiladi उभर आए हमारे अतीत के रंग और अतीत के भी अतीत वाली तस्वीरें शायद हम जन्मे भी न थे तब की हैं कुछ तस्वीरें कुछ चेहरे ऐसे भी दिखे जिन्हें कभी देखा ही न था और ऐसे रिश्ते नातेदार जिनका केवल बस नाम सुना था आज अचानक मिलने है आए अतीत का चिलमन खोलके एक दूजे से पूछने लगे हम Sikiladiयह कौन है ? वह कौन है ? जाने अनजाने से दिखते लोग अतीत का पर्दा पलट के आए मॉं ने सहज सम्भाले रखा था यह तस्वीरों वाला अधभुत ख़ज़ाना घर के कई कोनों से निकला समेट कर दराज़ों बीच छुपा सा अलमारियों में सालों से बंद धूल से परे था, फिर भी धूल की महक लिए तहख़ानों से बाहर निकला था मॉं बाबा का यह अनमोल ख़ज़ाना दादी तक तो हम समझे मगर परदादी को सब ने न पहचाना और फिर कई पुराने दूर दराज़ वाले रिश्तेदार जिन्का शायद कभी एक ज़िक्र सुना होगा जब मॉं और दादी बैठ बतियातीं थीं न जाने कितने लोगों की बातें कर जाती थीं आज वह सारे नाम पहचाने लगे मॉं चल बसी तो उसके अपने भी अब हमें हमारे अपने लगने लगे बेशक़ीमती लगतीं है अब ये तस्वीरें जिनसे साक्षात्कार हुआ न था कभी खुद अपने बचपन के चिन्ह ढूँढने लगे अब हम अतीत के पन्नों मेंsikiladi स्वयं को ही खोजने हैं लगे वे बचपन वाली स्टूडियो की कुर्सी पे ब्लैक एंड व्हाइट पुरानी तस्वीरें जिन पर स्टूडियो का नाम चिन्ह था और किनारे कटांऊं कारीगरी वाले जिन्हें हम आज देख रहे व्हाट्सएैप के ज़रिए जब भाभी एक एक कर, हर तस्वीर साझा कर रही … Continue reading अतीत की तस्वीरें
वो यादें जो सिमट तसवीरों में, मुझसे बातें करतीं हैं ...... कुछ दर्द का एहसास देतीं हैं , कुछ लबों पे मुस्कान बनती हैं........
उसने कहा देख कर तुम्हें याद आती है तुम्हारी माँ की और मैं फूली न समाई ह्रदय कुछ गद गद सा हुआ मामीजी भी बोली मुझे देख तुम तो साक्षात अपनी मॉं दिखती हो मन ही मन प्रसन्नता जागी और मैं इतराई खुद पर आईना जो देखती हूँ जाकर झलक उसकी ही सामने आती है वह मॉं जो छोड़ चली जहाँ को अपनी ही सूरत में ख़ूबसूरती बन पनपती है उसकी सूरत बनी मेरा अभिमान व अनजाना अनकहा स्वाभिमान उसकी सूरत से ही मिलती मुझे पहचान वर्ना शायद मेरी हस्ती रह जाती बेनाम सिकीलधी
संस्कार वे कहते हैं कुछ सुना दो अपने संस्कारों की कथा सोच में पड़ गई यकायक, मन में जागी एक व्यथा कुछ ग्लानि, कुछ मंद मुस्कान दोनों का अहसास हुआ चलो सुनाती हूँ सबको, दूर कर अब अपनी यह दुविधा पहले पले थे कुछ हम, अपने बुजुर्गों के मत पर राह चुनी उनके सिखलाए हुए संस्कारों के पथ पर मगर परिवर्तन को संसार का नियम मान कर अब चलते हैं हम अपने ही बच्चों की चुनी राह पर भूल गई कब, कैसे जग में उपजी यह नई प्रथा बड़ों का कहना मानते, छोटों को मानने की मिली सदा जी जी करते,खुशामद कर अब हम सब जीते हैं अपनी ही औलाद के आगे हम नतमस्तक रहते हैं मॉं ने सिखाया था, भोजन पकाते हुए न चखते है उसको स्वच्छता पूर्वक पहले ईश्वर को अर्पित करते हैं मगर बच्चों के नख़रों से हम इतना डर जाते हैं पकाते हुए, परोसते हुए, हम पहले चख कर देखते हैं पिता ने सिखाया था, बेवजह के खर्चे न करने चाहिए जितने की हो आवश्यकता, उतना ही उपयोग में लाइये परन्तु अब एक नया समाज है, जहां होड़ करना एक अदा है दिखावे का जीवन, बे सिर पैर लालच वाली सभ्यता है दादी के सिखलाए संस्कारों की ओट लिए हम बड़े हुए सुबह सवेरे जल्दी उठ कर, हर दिन पहले नहाए धोए प्रभु का व अपने बड़ों का आशीर्वाद ले निवाला ग्रहण किया और अपनी औलाद को दिन चढ़े तक सोने का संस्कार दिया रात को जल्दी सोते थे, तो ऑंख ब्रह्म पहर खुल जाती थी अब हम देर रात तक टीवी देख, या फिर पार्टी कर थकते हैं सुबह को भजन कीर्तन समय का दुरुपयोग सा लगता है हम बच्चों के आलस में रंग, अपनी दिनचर्या बदलते हैं मगर इस बदलाव में एक ताज़ा कशिश सी भी दिखती है अब हम भी सोशल मीडिया पर, अपने गुणगान करते हैं न किया बखान कभी जिस मॉं के हाथों बने पकवानों का आज उसके सिखाए व्यंजन पका, हम इतराया करते हैं चाचा, मामा, बुआ व फूफा अब सब पराए लगते हैं मगर अपने जने इन बच्चों पर हम जान क़ुर्बान करते हैं सुबह से शाम, हर दिन बस उनकी ही दिनचर्या का ध्यान घर जो पहले घर लगते थे, अब बन गए हैं मकान नन्हे मुन्नों की मुस्कान पर बलिहारी लेने की गई आदत अब तो बस उनकी हर अदा की फ़ोटो लेने की मिली तबियत कितनी ख़ुशी मिलती है जब हम नया स्टेट्स बदलते हैं अपने जीवन की कोई झलक, बेझिझक प्रकट करते हैं दूर देश बैठ अब हम अपनों से वर्चुअल ही मिल जाते हैं क्योंकि छुट्टियों के दिनों में तो हम बच्चों संग घूमने जाते हैं यह नई संस्कृति हम में एक नयापन संचारित करती है अब साठ के हो, हम बूढ़े नहीं, मदमस्त जवाँ से दिखते हैं कल हमें केवल अपने आदरणीय जन ने था सिखलाया मगर आज हमने अपने भविष्य को नया साकार दिया हमें कोई शर्म महसूस न होती जब बच्चे सिखलाते हमें उनकी ज्ञानवर्धक बातों ने हमारी सोच को नया आकार दिया संस्कार कोई हो, उतना भी बुरा कभी न होता है हमारा अपना दृष्टिकोण ही, हमारी सभ्यता बनता है न करें बुराई किसी की, अपनी सच्चाई में संतुष्ट रहें बस यही गुण अपना कर, न किसी जीव की हत्या करें आज आप हम जैसे भी हैं,प्रसन्न चित्त हो कर जीएँ मान सम्मान बड़ों छोटों का, आदर सहित एक सा करें … Continue reading संस्कार Sanskar
वो मना रहे वर्ल्ड पेरन्ट्स डे कहते करो आदर मॉं पिता का नहीं जानते दुनिया के कुछ लोग अपनी सभ्यता रख कर कायम प्रतिदिन देते आदर माता पिता को उनके कर चरण स्पर्श करते दिन का आरम्भ रखते उनको स्वयं संग सदा कर सकते अपने बचपन की भरपाई न मगर करते परवरिश उनकी जी जान … Continue reading वर्ल्ड पेरेन्ट्स डे
“धर्म जोड़ता है, तोड़ता नहीं “ बाबा हरदेव सिंह “Let blood flow in the veins, not in the drains” Baba Hardev Singh Ji.
एक ऐसी संतान जिसे यकायक मॉं के बुढ़ापे का अहसास हुआ।
https://anchor.fm/sikiladim/episodes/ep-e1hatocमॉं का मायका मॉं जब भी मायके जातीख़ुशी की लहर है छा तीउसके प्यार व दुलार भरी बातेंपूरे परिवार को सुखद अहसास दिलातीं मॉं जब जब मायके जातीछोटे भाई बहनों पर बलिहारी जातीघुल मिलते सब उसके इर्द-गिर्दएकता का नया संदेशा याद दिलाती मॉं जब भी मायके जातीछोटे भाई भतीजों में पिता को खोजतीभाभियों पर ममता … Continue reading मॉं का मायका