क्या वह बन गया था मेरा सरमाया ? या फिर मेरी मौत का संदेश था लाया …. असमंजस में थी मैं …. बूझ न सकी ख़ुशी मनाऊँ या…. स्वयं अपने ही मरने का मातम मनाऊँ …..
जीवन
धूप /Dhoop
मोह पाश
धरती मॉं

हम धरती पे जन्मे धरती पर ही बोझ बने और फिर धरती में ही समाए धरती हमें प्यार से बुलाए अपनी आग़ोश में लेती सुलाए प्रियजन चाहे रहते रोते रुलाए उनको यह बात कौन समझाए जिसे जानते पीड़ित असहाय और भरते सिसकीयों भरी हाय उनका अपना अब लौट कर धरती मॉं की गोद में सो … Continue reading धरती मॉं
किसका हक़

सदियों से सताया तुमने
किसने दिया है यह हक़
जीने का सलीक़ा

मॉं की याद
दिल करे फ़रियाद
काश बहुत से शेष रह गए