TRI-SHAKTI

Despite all efforts we might slip a little sometimes when seeking the spiritual progress. Living in a world full of vasanas and attractions, of name, fame, success, recognition, misery, sorrow and comparisons the spiritual success often takes a set back but we mustn't be disheartened and must not lose hope. We must again create the desire - the Iccha and again follow it and do it. That's the secret of success not only i spiritual gains but also for any other goals of life. Read on for more into the self upliftment

ईद और तीज

कुछ ईद मनाते रहे  कुछ अक्षय तीज मना गए कोई दे क़ुर्बानी बकरे की अपनी ख़ुशी मना रहेSikiladi कोई बाँह पकड़ एक दूजे की अपने संस्कार दर्शाते रहे  कुछ की आज़ानें पहुँचीं कानों तक किसी के शंखनाद ह्रदय को छू गए किसी के रोज़ों में भी जीव हत्या हुई  किसी के हर उपवास में फल आहार हुआ किसी की सेवियों में उनकी मिठास सही  कुछ के नारियल में धर्म की पावनता Sikiladi किन्ही के नात नतमस्तक कराते होंगे  किन्ही की घंटी पे भी सिर झुक जाते है कोई हर दूजे को काफ़िर जानते हैं  कोई हर ग़ैर को भी अपना मानते हैं Sikiladi किसी का जश्न क़ुर्बानी माँगता है  किसी का उत्सव फूल, पत्तों से सजता है  कहीं गोश्त से महफ़िल सजती है  कहीं हल्दी कुमकुम से स्वागत होता है 

श्री हनुमान दशक! Shree Hanuman Dashak!

Shree Hanuman Dashak (composed by Sadguru Swami Basantram) Sankat har sukh deta hai, Pavan tanay Hanuman Ram bhakt Bajrangbali, budhi bal gyan nidhan Baal pan mein surya ko , gras liyo Hanumant Devan ki Sun Vinay ko, kasht harey balvant Bali ke bal se chhipey, giri main jaa Sugriv Marva Bali Ram se, keen sukhi … Continue reading श्री हनुमान दशक! Shree Hanuman Dashak!

दशानन!

Ravan effigy at Shri Sanatan Dharam Sabha grounds in Nairobi: Dusshera 2022 विजय दिवस की आई दशमी राम कथा की हर घर कथनी । दस दस पाठ पढ़ कर भी पंडित न जाने जाते हो। वेदों पुराणों के ज्ञाता हो कर भी अहंकारी जाने जाते हो। स्वर्ण महल तुम्हारी लंका का भस्म कर गया वानर … Continue reading दशानन!

माता से प्रार्थना

हे मॉं अपनी आसीस रखना भूलों को राह दिखाना मॉं सब पर अपनी कृपा बनाए रखना तेरे दर पे जो भी आए मॉं हर उस प्राणी पर महर करना मॉं तेरे भक्तों की है विनती याद रखना हमें हर गिनती सिकलधी करती है अरदास सदा रखना चरणों के पास जो कोई आए दासी दास तेरे … Continue reading माता से प्रार्थना

संस्कारों से सम्बंध

https://spotifyanchor-web.app.link/e/IUutyHemwub संस्कार वे हैं जिनसे हमारी सभ्यता का निर्माण होता है! संस्कार वे हैं जिनसे हमारी परवरिश का निर्माण होता है! संस्कार वे हैं जिनसे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है! संस्कार वे हैं जिनसे मनुष्य की अंतर आत्मा उच्चतम मानी जाती है! संस्कार वे हैं जिनसे हमारा शरीर धरती का होकर भी आत्मिक रूप से दैविक प्रकृति का रहता है भारतीय सभ्यता के अनुसार हमारे लिए सोलह संस्कार की नियती है। मानव जीवन के जन्म से मृत्यु का सफ़र इन सोलह संस्कारों से सुशोभित माना जाता है हालाँकि आज की नई पीढ़ी संस्कारों की बली चढ़ाने में सक्षम होती दिख रही है। वेदों द्वारा सिखलाए ये सोलह संस्कार हमारे पूर्वजों ने तो पूर्णता निभाए होंगे परन्तु मेरे जैसे कई होंगे जिनके लिए वैदिक संस्कारों कि तुलना में पारिवारिक व सांसारिक संस्कार अधिक महत्व रखते हैं। ये वे संस्कार हैं जिनसे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है, जो हमारी परवरिश का अभिन्न अंग बन जाते हैं।  क्योंकि बात यहाँ अपनी विचारधारा के प्रस्तुतीकरण  की है तो अपनी ही बताने का प्रयास करती हूँ । हम भारतीय लोगों के लिए बच्चों की परवरिश बहुत मायने रखती है क्योंकि उसी परवरिश से उनके संस्कारों की नींव पड़ती है। बचपन मेंही मिले नैतिक संस्कार जीवन के हर मोड़ पर जीव के सहाई व मार्ग दर्शक बन जाते हैं।  जन्म से मृत्यु तक की राह पर हर नए मोड़ पर कोई न कोई संस्कार हमारा साथी बनता है। गर्भ में पल रहे शिशु पर गर्भाधान संस्कार का कितना असर होता है, ये बताने के लिए हमें ऋिशी विज्ञान की आवश्क्ता नहीं है। मेरी मॉं बताया करती थी कि जब मेरे बड़े भैय्या उनकी कोख में पल रहे थे तो उन्होंने प्रतिदिन श्री भागवत पुराण का अध्ययन किया था। बड़े भैया हम सब भाई बहनों से अधिक धैर्यवान, शांतस्वभाव के व सुलझी सोच वाले व्यक्तित्व के मालिक हैं।  इसी प्रकार मेरे अपने बच्चों पर भी मैं ने गर्भ से जुड़े उनके संस्कारों की झलक देखी है।  ऐसा माना जाता है कि हमारी सन्तान हमें ईश्वर का दिया उपहार होती है एवं हमारे पूर्व करमों के अनुसार प्राप्त होती है। मनु साहित्य केअनुसार हर प्राणी अपनी सन्तान द्वारा अपना पुनर निर्माण करता है । शायद इसीलिए हमारे जीवन में जो कमी रह जाती है हम अपनी सन्तान के माध्यम से परा करना चाहते हैं। कुछ वाक्यांश अपने जीवन के पन्नों से :  बचपन से ही घर में दादी एवं अपने पिताजी को दान व पुण्य करम करते देखा। जाने अन्जाने वह संस्कार कब मेरे मन में बस गए, पता हीन चला। कभी सचेत तरीक़े से इस पर विचार नहीं किया।फिर जब बच्चे बड़े हो कर अपनी इच्छानुसार धर्म कर्म के कार्य करते दिख जातेतो कुछ आश्चर्य सा हुआ। पूछने पर बोले में तुम्हीं से तो सीखा है यह सब। अब मुड़ कर देखती हूँ और ख़ुद को टटोलती हूँ तो जीवनदर्पण के समक्ष वे अनाथालयों , वे वृद्धाश्रमों , व झुग्गी झोंपड़ियों कि ओर गए क़दम यकायक सामने आते हैं।ये ही तो हैं संस्कार जिनसे बढ़ता जीवन का मान व शान। बिटीया के ओ लेवल की परीक्षा का नतीजा निकला था। वह उत्तीर्ण अंकों से इतनी सफल हुई थी, जिसकी आशा न उसने, न हम ने की थी। मगर जब नतीजा निकला था तो वह कोइम्बटूर में पढ़ने को जा चुकी थी। उसको जब फ़ोन करके उसके इम्तिहान का नतीजा सुनाया तो उसे मानों यक़ीन ही न हुआ। मगर अगले ही क्षण बोली, यह ईश्वर की देन है इसलिए आज अपने स्कूल की संध्या आरती तो मैं ही करूँगी । यह सुनकर मेरी आँखें ख़ुशी से भर आईं व उसके गुरू स्वामी स्वरूपानन्द जी की सिखलाई पर गर्व भी हुआ। उसने न कोई उपहार माँगा,न ही ख़ुद पर इतराई : उसने तो ईश्वर का उपकार जताया। इतनी अधेड़ व चंचल सी आयु में इतना संतुलन उसका संस्कार ही तो था। एक दोपहर मैं नैरोबी स्थित एक माल में गई। उसी माल में बड़ी बिटिया का दुकान भी था। उससे मिलने … Continue reading संस्कारों से सम्बंध