
तुम्हारे अपनों ने ही किया है
तुमको पराया हमसे
जो महीनों तुम से मिलते भी न थे
उन्होंने ही आज हक़ जताया तुम पे
है तुम्हारी ढलती उम्र का तक़ाज़ा शायद
तुम से बिछड़ जीने का तरीक़ा सिखाया हमको
देख रहा ख़ामोश होकर परवरदिगार भी
हम तड़पते रहे मगर मिलने न दिया तुमसे
जी लेंगे किसी तरह तुम से जुदा होकर
वादा करो ऐ दोस्त, दिल से न जुदा होना कभी
तुम भी तो रोए होगे हमारी याद में शायद
जुर्म बड़ा ही संगीन किया दुनिया ने
अपने बनाम पराए हैं आज तुम्हारे संग
मगर हमें ही मिलने न दिया गया तुमसे
खो गई वह अस्मत बेतकल्लुफ़ी तुम संग
अब दुनिया के दस्तूर और तकल्लुफ़ निभाने पड़ेंगे
ओढ़ औपचारिकता क चादर फिर एक बार
कई पुराने रिश्ते जहां वालों से निभाने पड़ेंगे
जज़्बातों की देकर क़ुर्बानी
तुमसे अपनापा पर्दों में ढकना होगा
सिकीलधी