
हॉं मैं बेटी हूँ
और मेरी भी बेटी है
हॉं मैं एक मॉं हूँ
और मॉं होकर भी एक बेटी हूँ
मेरी बेटी भी एक मॉं बनेगी
और उसकी बेटी भी शृंखला आगे बढ़ाएगी

मेरी मॉं भी एक बेटी थी
और उनकी मॉं भी एक बेटी थी
वह जिनको मैं नानी कहती
और जिनको मैं परनानी कहती
उनकी भी एक मॉं थी
और वह भी एक बेटी थीं
सदियों से यह क्रम चला है
हर मॉं किसी की बेटी भी है
फिर भला कुछ सोचो तो
तनिक विचार करके देखो तो
हर मॉं की कोई जननी रही है
प्रकट यशोदा या अप्रकट देवकी रही है
हर मॉं की कोई कौशल्या रही है

सर्वदा से चला आ रहा क्रम है
उसका पहला बीज कहॉं था उपजा
वह पहली दिव्य कोख़ थी किसकी
जिसने हम सब को जना है
एक ही दिव्य कोख़ की हम बेटियाँ
आपस में क्यों ताल मेल नहीं है
क्यों न सहते हम एक दूजे को
क्यों न हर बेटी, हर मॉं का सहारा बनते
भेद भुला छोटे व बड़े का
तज अभिमान रंग व जाती का
न देखें सफलता व असफलता किसी की
हाथ बड़ा थाम लें एक दूजे को

हर बेटी, हर मॉं की सहायक बन कर
एक संपूर्ण सृष्टि का चोला ओढ़कर
प्रसन्न चित्त हृदय की माला पहनकर
संसार में सुख की वर्षा कर जाएँ
हर बेटी के मॉं बनने तक
उसकी राहों में फूल बिछाएँ
हर मॉं की संतान को
सम दृष्टि से समता व दुलार दे पाएँ
ममता का ऑंचल फैला कर
बेटियों वाले पेड़ को प्यार से सींचें
माँ तो संपुर्ण होती है उपर से आपकी ये खुबसूरत पंक्तियाँ✨
बहुत ही सुंदर ❤
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धन्यवाद । हर बेटी में भी यदि आने वाली मॉं का स्वरूप दिखे तो कितना अच्छा हो।
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So beautiful, and so thoughtful! Appreciable lines👌👌👌
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Thank you for appreciating the sentiment.
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The story of the woman from the beginning, that had no beginning… but is… and how each ought to hold the hand, and heart of each other… but unfortunately is trapped in enmity… like the story of the man…
Blindness is a terrible affliction…!
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Thank you for liking and commenting. You are right about enmity being a trap
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