वो पूछते हैं ख़ैरियत
हम क्या जवाब दें
सोच में ढूबे रहें
यॉं फिर
उदासी की चादर उतार दें
तक़ाज़ा ए तकल्लुफ़ के तले
मुस्कुराना लाज़िमी है मेरा
ग़म को पर्दे में रहने दें
या फिर
ज़ख़्मों कि नुमाइश ही कर दें
बह के सूख चुकी काजल की कतरन
सिकीलधी की आँखों के धब्बे
पोंछ कर साफ़ कर दें
या फिर
गहराई निगाहों तले रहने दें
चेहरे की रूठी रंगत
क्या लौट आएगी कभी
बेनक़ाब हो सामने जाएँ
या फिर
ख़ुशनुमा शिगूफ़ा ओढ़ लें
मैली हो चलीं वो झुर्रियों की झालर
हँसी होंठों की भी समेट ले गईं
ज़ाहिर कर दें ख़ूबसूरती का जनाज़ा
या फिर
बेमुरव्वत बेक़रारी बिखेर दें
तहज़ीब की सिलवटें उधड़ने को आईं
हमारी हर हरकत पे हुई जग हँसाई
दामन में दबोच लें सुकून को
या फिर
यह एैलान ही कर दे
कि तेरी तंगदिल हस्ती ने
हमें कर दिया पराई
सिकीलधी
मार्मिक पंक्तियाँ लेकिन बेहद गहरी ❤❤
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शुक्रिया जी
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