एै ब्रह्मकमल तेरे पत्तों से छलकती
छवि आती हुई की बहार की
गर्भ धारण लिए तेरे पत्ते
आशा देते नए संसार की
कलियों के विकसित बोझ लिए
झूलतीं डालियों ने कई प्रण लिए,
सुंदरता फैलायेंगे इस जग की
मगर अंधियारी रात के तले
खिलेंगे कमल ब्रह्म देव के
मनमोहक अमृत संचार लिए
सुगंधित मन लुभावने पुष्प ये
ईश्वरीय ऊर्जा की पुकार लिए
सुबह का सूरज न भाता इनको
सिमट जातीं यह अपने ही भीतर
बहार तो आएगी, सुगंध महकेगी
कुछ दिन का इन्तज़ार लिए
अभी है बाक़ी इन का बढ़ना
नवजात कमल की आशा लिए
सिकीलधी
बहुत सुंदर रचना 👌🏼👌🏼
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धन्यवाद जी
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