मॉं बाप का वियोग कम्बख़्त चीज़ ही ऐसी है,
जग भर के रिश्ते हों चाहे जीवन में….
न कोई पिता सम्मान, न कोई मॉं जैसी है
कभी शायद वो भी रोए होंगे इस वियोग वश
आज हमारी बारी है, बिछड़ना लगता भारी है
क्या कल की पीढ़ी भी सहेगी यह सब?
कौन जाने यह वियोग किस किस पर भारी है
विछोड़े की निर्दय चलती दिल पर आरी है
शायद मुश्किल हो समझ सकना़……..
बेटियों के भाग्य में धीरज का पलड़ा हावी है
जो अश्रु बह जाते तो हो जाती जग हँसाई है
अपने विवाह से आयु केअंतिम छोर तक…..
वियोग रहता हर बिटीया के संजोग संग है
सिकीलधी
ह्रदयस्पर्शी 👌🏼
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Dhanyavaad ji.
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बेहद उम्दा 💕🤗
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Shukriya ji.
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बहुत उम्दा
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शुक्रिया
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