अच्छा किया जो तुमने
छीना मुझ से अपना लाल
मोह का पाठ सिखाया तुमने
शुक्रिया तुम्हारा एै बहुरानी
अब मैं समझी मोह का कमाल
इस ममता की तुम्हें क्या दूँ मिसाल
समझती हो लाल तुम्हारा ही है
मगर यह जान लो, पहचान लो
कहलाएगा वह मेरे ही ऑंगन का लाल
अच्छा किया जो तुमने
छीना मुझसे अपना लाल
ममता तुम्हारीआड़े है आई
संस्कारों की तुमने सुनी न दुहाई
दादा दादी का हक़ है उस पर
तुम शायद यह समझ ही न पाई
यह है नादान अल्हड़पन तुम्हारा
जिसे आता हुआ समय देगा सिखलाई
क्यूँ हैं मेरी ऑंखें ढबढबाईं
यह बात तुम्हें समझ ही न आई
अच्छा किया जो तुमने
छीना मुझ से अपना लाल
अपने ममत्व को प्रश्नचित कर
भीतर का डर दिखलाया तुमने
वात्सल्य मेरे ह्रदय का तड़पता छोड़
ख़ुद को केवल माता दर्शाया तुमने
संतान दूर कर मेरे ही पुत्र की
मुझ से नन्हा लाल जब छीन लिया
एक मॉं होकर दूजी मॉं को सताया तुमने
अच्छा किया जो तुमने
मुझ से छीना अपना लाल
मोह का पाठ सिखा कर मुझको
अपनी ही असुरक्षित अवस्था दिखाई
लाल तुम्हारा, तुम हो उसकी जननी
फिर यह ईर्ष्या यह कैसी व्यथा जताई
ख़ुद अपना लाल मैं तुम्हें सौंप कर
अब उसके लाल पर सबसे लेकर बधाई
इस मोह पाश की तोड़ ज़ंजीरें
आज कुछ ममता से मुक्त हो पाई
,
अच्छा किया जो तुमने
छीना मुझ से अपना लाल
बंधन मुक्त कराते मुझको
छुड़ाया मेरा मोह का जंजाल
तुम संभालो तुम्हारी ग्रहस्थी
तुम ही पालो अपना परिवार
शुक्रिया करती हूँ फिर तुम्हारा
अब आसान होगा मेरा जाना उस पार
मोह पाश का फन्दा खोल कर
क़रीब हुआ ईश्वर का अहसास
सिकीलधी
बहुत सुंदर👌🏼 करीब हुआ ईश्वर का अहसास 👌🏼😊
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धन्यवाद।
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बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ 💕😊
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शुक्रिया
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चक्र है—
जो बोयेगा सो पायेगा।
खूबसूरत रचना दिल को छूती हुई।👌👌
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Shukriya Madhusudan Ji.
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स्वागत आपका। नववर्ष मंगलमय हो।
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