न वह व्यक्ति विशेष
वह है अभिव्यक्ति विशेष
न वह शरीर की सुन्दरता
वह है तत्व की जागरुकता
होता यदि शरीर से गुरू पहचाना
तो केवल एक की हम सब को सिखलाता
जीवन जीने की मर्यादा
गुरू है वह भाव जो सदा रहता साथ
गुरू है वह क्ष्रद्धा जो बनता विश्वास
गुरू है उस समर्पण का नाम
जिससे मिलता बन्दगी का अहसास
गुरू की पहचान केवल एक नाम नहीं
गुरू हमारे व्यक्तित्व की है पहचान
जीवन ढगर पर कब, कहाँ, कैसे मिलता गुरू
हम अनजान न समझते, न बूझते यह नाता
गुरू है वह प्रार्थना जो जीवन दीप जगाता
गुरू है वह मनोभाव जो सत्य की राह दिखाता
गुरू है उस आस्था का अंजाम
जो स्वयं को दिलाता स्वयंद्रष्टां का पैग़ाम
गुरू है उस अटूट रहमत का नाम
जो हटाए अज्ञान, ज्ञान उजियारे का पिलाए जाम
नतमस्तक यह सिकीलधी करती है शुकराना
हे मेरे गुरू तुमने मेरी मुझसे करा दी पहचान
सिकीलधी
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति 🙏🙏
LikeLiked by 1 person
बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ लिखी है आपने।🙏
सदगुरु पूर्ण होते हैं इसलिए उनकी पूर्णिमा मनायी जाती है। दीक्षा के दिन से वे शिष्य के अंतःकरण में निवास करते हैं। वे एक ऐसे माली हैं जो जीवनरूपी बगिया को हरा-भरा एवं महकता कर देते हैं। वे भेद में अभेद के दर्शन करने की युक्ति सिखाते हैं।
गुरू पूर्णिमा कि हार्दिक बधाई🌸😊
LikeLiked by 2 people
नतमस्तक यह सिकीलधी करती है शुकराना
हे मेरे गुरू तुमने मेरी मुझसे करा दी पहचान।
खूबसूरत अभिव्यक्ति।👌👌
हम आज कहाँ होते,
अगर गुरु ना यहाँ होते।
बिन गुरु ज्ञान नही होता।
LikeLiked by 1 person
sachi baat kahi apne.
LikeLike
बेहतरीन
LikeLiked by 1 person
Dhanyavaad
LikeLike
गुरु जी सबकुछ है
LikeLiked by 1 person
Dhanyavaad ji.
LikeLike