चाह कर भी दूर से बस देखा तुम को
न मिल सके गले, न छू पाए हम तुम को
कैसी है विडंबना, कैसी यह मजबूरी
जो दिल के हैं क़रीब, उन्हीं से रखनी है दूरी
किस से करें शिकायत, किस को दें दुहाई
सित्तम यह ज़माने का नहीं, कोरोना ने आग सुलगाई
हिम्मत रख ऐ मित्र मेरे, बीत जाएगा दुख का समाँ
आख़िर कितना तड़पाएगा हम को यह वायरस जवाँ
लौटआएँगे फिर वह सुहाने बहारों के दिन
जब रहना न पड़ेगा हमें एक दूजे बिन
सिकीलधी
Very well written
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Thanks.
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You’re most welcome.
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Beautifuly expressed …..
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Thanks for liking.
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बेहद उम्दा पंक्तियाँ है💐😊
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धन्यवाद
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बेहतरीन पंक्तियाँ।👌👌
लौटआएँगे फिर वह सुहाने बहारों के दिन
जब रहना न पड़ेगा हमें एक दूजे बिन
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वक़्त जरूर लौटेगा,
फिर से हम एक साथ होंगे,
छुएंगे बेधडक अपनी गाल,
चेहरों को और तुम्हें भी,
फिर सुनहरे आलात होंगे।
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Thank you for such a beautiful comment
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Swagat apka.
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खूबसूरत 👌🙏🙏
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