
तुम आए मेरे जीवन में, बन कर मेरे सतगुरू
बस तब से ही सही मायने से हुआ मेरा जीवन शुरू
सत्य का बोध कराया तुमने,
अंधविश्वास मिटाया तुमने,
जाती वर्णों की गाँठें खोल के
बन्धन मुक्त कराया तुमने
न केवल मूर्तियाँ खुदा सम ,
हर इक में ईश दिखाया तुमने
मेरे रहबर, मेरे सच्चे पातशाह ,
हर जीव को अपना बनाया तुमने
तुम आए मेरे जीवन में, बन कर मेरे सुख सखा
बस तब से ही जीवन से मेरे, हर दुख की तुम बन गए दवा
तुम ही प्रतीक, धर्म का स्वरूप
जग में आए हरदेव का लेकर रूप
तुम ही पिता, पुत्र, भाई की परिभाषा
तुम ने सिखलाई गुरसिखता की भाषा
लख चौरासी की, काटी जम फाँसी
दूर की दुखी दिलों की सारी उदासी
मानव जन को सिखा मानवता खुलासी
तृप्त कर दी कई आत्माऐं, आदर की प्यासी
तुम आए मेरे जीवन में, बन कर हवा का मीठा झोंका
बस तब से मैं मदमस्ती में हूँ , न कोई बन्धन, न कोई रोका
पर पीढ़ा को अपना जान, सहलाया
हर जीव को निष्पक्ष, तुमने अपने गले लगाया
आपसी प्रेम व भाईचारे का पाठ पढ़ाकर,
इनसानियत का अहसास दिलाया
लहू बहने न दे बोल के, रक्त दान करवाया
हर छोटे बढ़े का एक सम्मान, सम्मान जताया
दूर कर निंदा, नफ़रत की दीवारों की दरारें
प्यार, सत्कार, सेवा , सिमरन का पुल ठहराया
सिकीलधी

जब जब धर्म पर अधर्म और आडम्बर छाया तब तब सतगुरु ही उस तम को मिटा उजाले के समीप लाया। बहुत खूबसूरत रचना सतगुरु को समर्पित।
LikeLiked by 1 person
Dhanyavaad
LikeLike
Swagat apka.
LikeLike
बहुत खूबसुरत लिखा है आपने !!!
LikeLiked by 1 person
Shukriya
LikeLiked by 1 person
बहुत ही प्यारी कविता है सदगुरू जी के लिए🙏🙏😊😊
चाहे जैसे मुझे रख लो कुछ ना कहूँगा मैं
तेरा ही था तेरा ही हूँ तेरा रहूँगा मैं
चाहे जैसे मुझे रख लो
ओ मेरे सदगुरू जी
LikeLiked by 2 people
बहुत बहुत आभार आपका इतनी सुंदर पंक्तियाँ जोड़ने के लिए । ऐसे ही प्रोत्साहन बढ़ाते रहिएगा ।
LikeLiked by 1 person