
ओड़ ली मॉं आज फिर तेरी यादों की चादर
तुझे याद करआज दिल हुआ जाए बेकल
तुम थी तो दुनिया का अंदाज़ अलग था
तुम्हारे जाने से, रिश्तों का फीका सा रंग था
याद आती हैं बातें वह बचपन वाली सुहानी
कितनी ही रातों में सुनी हमने तुमसे कहानी
ख़ुद पढ़ी लिखी न हो कर भी, हम को पढ़ाना
जब हम थक हार जाते तो हिम्मत बढ़ाना
तब हम जान सके न मॉं, बादल थे कितने घनेरे
न जाने कैसे दुख तूने सहे चुपचाप बहुतेरे
बहुत ढाढ़स संग जीया तुमने, जब लग गए थे पहरे
आस का दीपक जलाती थी तुम, शाम सवेरे
घाव दिल पे लेकर, न जाने कितने घहरे
चली गईं तुम अचानक, छोड़ हमें अकेले
सिकीलधी
👌👌
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Thank you
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लाजवाब ✌💞
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माँ की बात ही कुछ और है। बहुत खूबसूरत रचना लिखा है आपने। बहुत बढ़िया।👌👌
माँ,
तूँ पास ना होकर भी समीप थी,
कैसे कहूँ तूँ कितना करीब थी,
जब भी कोई दुख होता तो सह लेते,
ये सोचकर कि दूर हो
मगर हो तो सही,
एक बार आवाज लगाएंगे
दौड़ी चली आओगी,
आंखों से मिट जाती नमी,
आज तेरा नही होना
कैसे कहें हमें कितना रुलाती है,
माँ तुम याद बहुत आती है,
माँ तुम याद बहुत आती है।
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Apka bahut dhanyavaad Madhusudan Ji. Maa ke liye apke vichaar bahut umda hain.
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आपकी कविता बहुत अच्छी लगी। यह बात सच कही आपने कि जब तक कोई हमारे पास होता है हमें उसकी अहमियत का एहसास नहीं होता और जब वह व्यक्ति हमसे दूर चला जाता है तब हमारे पास उसे याद करने और रोने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं होता। बहुत सुंदर बहुत सुंदर।
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Dhanyavaad. apne sach kaha.
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Dhanyavaad. apne sach kaha.
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