हम धरती पे जन्मे
धरती पर ही बोझ बने
और फिर धरती में ही समाए
धरती हमें प्यार से बुलाए
अपनी आग़ोश में लेती सुलाए
प्रियजन चाहे रहते रोते रुलाए
उनको यह बात कौन समझाए
जिसे जानते पीड़ित असहाय
और भरते सिसकीयों भरी हाय
उनका अपना अब लौट कर
धरती मॉं की गोद में सो जाए
जीवन सफ़र कर समर्पित वह
अपने ईश्वर ओर क़दम बढ़ाए
जाने दो उसे, न लेना तुम बुलाए
कहीं पुकार तुम्हारी, उसे रोक न लाए
जाने दो जाने वाले वाले को
एक नया जहाँ वह लेगा अपनाए
जहाँ उसे न कोई ग़म न दर्द सताए
मालिक के चरणों में रहेगा बिताए
सिकीलधी
बेहदख़ूब
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हम धरती पे जन्मे
धरती पर ही बोझ बने
और फिर धरती में ही समाए
धरती हमें प्यार से बुलाए
बहुत ही सत्य लिखा है। पहली दो पँक्तियाँ बहुत कुछ कहती हुई।
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Dhanyavaad.
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