क्या मिटायेंगे ये हिन्दुओं का नाम
जो ख़ुद हिन्दुत्व का कर सके न सामना
एै नापाक दामन वाले मुस्लिम सुन लो
कब्र खोद रहे हो ख़ुद अपनी ही तुम
मोदी कब मिटा जो तुम उसे मिटाओगे
हिन्दू कब मिटा जो तुम उसे मिटा पाओगे
है इतिहास गवाह जो कहते दूजे को काफ़िर
ख़ुद ही धर्म न निभाया उन जा़लिमों ने
तुम न अन्त कर पाए कभी हिन्दूओं का
न होगे सफल तुम आज भी कायरों
अब तो आया है विद्रोह का समय
जय जय गूंजेगी हर हर महादेव की
मोदी एक अकेला ही हिन्दू नहीं है यहाँ
तत्पर हैं कई नरसिंह रूप वाले लोग यहाँ
अब जी उठेंगे कई महाराणा प्रताप फिर
पैदा हुए हैं गोविंद सिंह बहुतेरे तेरी ख़ातिर
वीर शिवाजी व भगत सिंह का लहू जी उठा
और फिर भी तू रहा लोगों को ग़लत बरगला
अरे नासमझ न समझ कमजोर हिन्दू को तू
यहाँ पाएगा दुर्गा,पद्मिनी व लक्ष्मीबाई नार तू
अमन पसन्द सही हैं निसन्कोच हम
मगर थाम सकते हैं तलवार भी बेशक
हमें चुनौती देने वाले बुजंदिल मानव
हमारे धैर्य को तू क्या समझेगा एै दानव
सिकीलधी
हमें चुनौती देने वाले बुजंदिल मानव
हमारे धैर्य को तू क्या समझेगा एै दानव.
आक्रोशसे भरी कविता।
जब सहनशीलता हार जाती है तब दर्द देनेवाले को दर्द का आभास होता है।
तेरा दिल नफरत का घर और मुझसे कहते प्यार करूँ,
दो-दो चेहरे तेरे तुमपर कैसे मैं ऐतवार करूँ।
LikeLiked by 1 person
Thank you for your valuable response to the poem. Your choice of words is very effective Madhusudan ji. Thank you for liking my poems always. Much appreciated.
LikeLiked by 1 person
Swagat apka…..waqyee achchhi rachna hai…
LikeLike