यादों का उमड़ पड़ा दरिया
ऐ मॉं जब जन्मदिन तेरा आया
बहुत जी चाहा बतिया लूँ तुम संग
मगर तुम्हें कहीं आस पास न पाया
नयन भी अब तो थक चले हैं माँ
स्वप्न में ही सही पर आ तो जाओ मॉं
कुछ मीठी बातें कह लूँ , कुछ सुन लूँ
कुछ पल तुम्हारे संग बैठ लूँ ऐ मॉ
नींद भी अब तो पहले सी आती नहीं
काश तू आकर फिर लोरी गा दे ऐ मॉं
तेरे आग़ोश मैं सिमट कर समां जाऊँ
दुनिया से फिर बेपरवाह बना दे ऐ मॉं
सिकीलधी
सच— माँ का कोई जोड़ नहीं।बहुत खूबसूरत रचना।👌👌
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Dhanyavaad Madhusudan Ji
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Wah .
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