चाहा था समेट लूँ यादों के धागे
पिरो लूँ बीते कल के कुछ मोती
मगर कमबख़्त दिल दे गया धोखा
हर याद पिरोने से पहले कर गया दगा़
आँखों से बहने लगी एक एक याद
गुज़रे समय की हूक करती फ़रियाद
न बुला! न रुला! एै दिल ए नादान
मुझे अतीत बन कर ही रहने दे अब
न खोल पिटारा उन हसीन लम्हों का
उस ऊपर वाले ताक पे बैठा रहने दे
जहाँ न पहुँचे किसी अहसास का हाथ
बहुत चोट लगती है जब कोई छोड़ता है साथ
यादों को वहीं छोड़ अकेला
मैं निकल पड़ी तन्हा
और
थाम लिया मैंने जीवन का मेला
बीते कल को यादों से धकेला
ज़िन्दगी ले गई मुझको बहला
सिकीलधी