बर्सी का दिन

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फिर आ गया आज वह दिन
क्ष्राद्ध का महीना और बर्सी का दिन
हर वर्ष यही तारीख़ जब आती
दर्द भरी कुछ यादें ले आती

डैडी आपका हम सब को छोड़ जाना
जहाँ से दूर अपना जहाँ बनाना
और फिर बस यादों की सीमा में बस जाना
हुए तेइईस साल जब आप हुए रवाना

मेरे बच्चों से छिन्न गए उनके नाना
क़िस्से कहानियों में ज़िक्र आपका आना
पुराने अालबम  की तस्वीरों का बना ख़ज़ाना
और ढेरों यादों के बीच आपका बस जाना

इन्तज़ार है अबतक उस भले दिन का
जब आप तक पहुँच कर होगा अपना मिलना मिलाना
चाहती हूँ मैं भी जीवन से रूठ आपके पास आना
एक बार फिर मम्मी डैडी संग बैठ बतियाना

फिर आ गया है आज वह दिन
जब हम सब से विदा हो आप कर गए थे चलाना
टीस सी उठती है मन में सालाना
आपके चले जाने का ज़ख़्म हुआ न कभी पुराना

सिकीलधी

One thought on “बर्सी का दिन

  1. दुनियाँ की सच्चाई यही है।खूबसूरत श्रद्धांजलि।ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें।

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