कल रात गई मैं एक न्योते पे
न्योता था एक जन्मदिन का
जन्मदिन किसी के पापा का
पापा जो पच्छतर के हो चले
शिष्टाचार निभाते लोग मिले कई
शिष्ट जिनका व्यवहार न था
व्याहवारिक पहनावा सभ्य सही
पर सभ्य उनका व्यवहार न थ
हाथ मिलाते और कुछ गले मिलते
मगर भाषा में अश्लील शब्द कह जाते
उपरी सतह बहुत मधुरमय सी दिखती
पर भीतर उनके संस्कार न था
पापा बेचारे इस शोर गुल बीच
विचारबद्घ हुए से रहे ताकते
उच्च सिखलाई सिखाइ थी उन्होंने
जिसे माना व जाना उनके अपनों ने
मगर वर्षगाँठ का इस तरह मनाना
बहुत अटपटा सा लगता उनको
नाच व गाना, शोर ओ गुल बीच
शांत हो ह्रदय भीतर लगे झाँकने
फिर हर्ष ओ उल्लास का देख नजा़रा
बेटा, बहू, पोतों पर मन जाता वारा
पापा अपने को मना रहे हैं आज
अब तो वही बनेंगे जीवन का सहारा
तज विचार मेहमानों पर से अपने
पत्नी की याद के देखते हैं सपने
दन्मदिन तो मात्र एक बहाना है
अपनों का अपनों से घुल मिल जाना है
पीना पिलाना, मदमस्त हो झूमना
महमानों का औपचारिक मुस्कान दिखाना
इन बाहरी बातों के बीच रहते
पापा का अपना शिष्टाचार में रहना
अब भाता यह शोर व शराब न उनको
उनको तो था दिन सुखमय बिताना
परिवार जनों की ख़ुशी में ख़ुश हो
व्यवहार में पड़ा है परिवर्तन लाना
सिकीलधी
Bilkul anchhuye pahluwon ko chhua apne…….Ham dikhaawe men apnatav ko khote jaa rahe hain……jo bhi waqt hai ek saath prem se bitaane ke use bhi aadambar aur dikhaawe men dur karte jaa rahe hain…….umda lekhan.
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Thank you Madhusudan Ji. Bilkul sahi baat kahi apne.
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