कवि गोष्ठी 

ज़िक्र उस परिवश का, और फिर बयां अपना…..
ravidas
कवि गोष्ठी

समाज की बगिया में हे जन खिले कुछ ऐसे महान फूल ( सिकीलधी)

महक जिनकी बिखरने से ही धुल गई मस्तिष्क से धूल
सिकीलधी कहे सब गुणीजन से, हम तुम क्या करें अभिमान ( सिकीलधी)
बीत गया ऐेसा समय, जब कवी हुए सन्त सम्मान महान
दोहों के दायरे में लिख गए, अपना निज अन्तरध्यान (सिकीलधी)
शब्दों के माध्यम से दे गए, हम सब को ईश्वरीय ज्ञान
रात गँवाई सोय के, दिवस गँवाया खाय
हीरा जन्म अनमोल था, कैड़ी बदले जाय।। ( वाणी क्ष्री कबीर जी)
कबीरा आकर कह जो गए कुछ ऐसी भली सी बात (सिकीलधी)
सब जन प्राणी एक सम्मान हैं तज डालो तुम जात व पात
गुरू गोविंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाँय
बलिहारी गुरू आपनो, जिस गोविंद दियो मिलाय।। ( वाणी क्ष्री कबीर जी)
सूर यह कह गए वाणी, प्रभु मेरे औगुन चित्त न धरो
समदरसी प्रभु नाम तिहारो, अपने पनहि करौ।। ( वाणी क्ष्री सूरदास जी)
नेत्रहीन सूरदास ने देखा एैसा अजब नज़ारा
खोल किवाड़ मन मन्दिर के, भीतर मिला दीदारा ( सिकीलध)
देव के दर्शन, निज अन्तर्गत, बन्द हो नेत्रन द्वारे (सिकीलधी)
एक अनेक बियापक पूरक, जत देखऊ तत् सोई।। ( वाणी क्ष्री सूरदास जी)
नयन सजल और काया कोमल, निज हर्दय बसे साँवरिया
कान्हा के प्रेम रस रंग गई,मीरा बाई की जीवन गठरीया ( सिकीलधी)
बिरह की व्यथा, बोली रे जोगन एैसे ( सिकीलधी )
गाती राग, आली रे मेरे नैणा बाण पड़ी
चित्त चड़ी मेरे माधुरी मूरत, उर बिच आन पड़ी ( वाणी क्ष्री मीरा बाई)
कब की ठाड़ी पंथ निहारूँ , अपने भवन खड़ी।।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय होके सोए ( वाणी क्ष्री तुलसीदास जी )
अनहोनी होती नहीं, होनी हो सो होए।।
चन्दन घिस कर, कर गए,तुलसी कार्य बहुत महान ( सिकीलधी )
तिलक लगाने उनके माथे,आ गए स्वयं राम भगवान
तुलसी इस संसार में, भाँति भाँति के लोग
सबसे हंस मिल बोलिए, नदी नाँव संजोग।। ( वाणी क्ष्री तुलसीदास जी )
दिनकर कवी भी कह गए ऐसी उत्तम बात ( सिकीलधी)
अकेला होने पर जगते हैं विचार ( दिनकर)
ऊपर आती है उठ कर, अंधकार की नीली झंकार।।
नामदेव की भक्ति देख, क्ष्रीविठ्ठल रुक न पाए ( सिकीलधी )
श्वान रूप रोटी ले भागे, घी पाने दर्श दिखाए
नामदेव कीर्तन करी, पुढे देव नाचे पाँडुरंग ( क्ष्री नामदेव जी )
भोजन पाने विठ्ठल स्वंय, दिखाए अपना रंग।।
रविदास जन्मे चमार, नीच जात कहलाए  ( सिकीलधी)
करम किये उच्च जिन्हीं, गुरू ग्रन्थ में शबद समाय
बहुत जनम बिछुरे थे माधऊ, जनम तुम्हारे लेखे ( क्ष्री रविदास जी)
कहे रविदास आस लगि जीवउ, चिर भइयो दरसनु देखे।।
सुघड़, सुचेता, सीधी, साधी कहते थे वह बात (सिकीलधी)
हास्य और व्यंग्य की तब करता न था कोई बात
आया है सो जाएगा, राजा रॉक फ़क़ीर ( सिकीलधी)
नैरोबी में बिठा गोष्ठी, प्रियजन करें तासीर
हिन्दी शुद्ध आती नहीं, इसलिए किया तनिक अभ्यास  ( सिकीलधी)
केनभारती के मंच पर आकर,कहीं हो न जाए उपहास
सिकीलधी की क़लम ने आज, किया यह किंचित प्रयास (सिकीलधी)
कविता लिख ही डाली फिर, यह मंच ही है कुछ ख़ास
सिकीलधी

IMG-20180915-WA0003

kenbharti sunday Nation
A write up as published in the Sunday Nation dated September 16, 2018

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s