
खुशीयॉं मनाई हैं जी भर कर
जन्मदिन मनाया सज सँवर कर
ह्रदय प्रफुल्लित हुआ सा जाए
तोहफ़े देख मन हर्षित हो जाए
जी चाहता चलो पार्टी हो जाए
है एक उत्साह कि बड़े हुए हम
वर्षों की गिनती में आगे बढ़े हम
मगर न समझा, मगर न जाना
यह जन्मदिन तो बस है एक बहाना
बढ़ती गिनती से है ख़ुद को घटाना
दिन दिन जीवन ज्यों आगे बढ़ता
हर दिन और भी है एक दिन घटता
इस बढ़ती जीवन की बगिया में
हर क्षण है जीवन काल कुछ घटता
हर वक़्त अपना है वक़्त निकलता
कुछ ऐसी ही है आयु की सभ्यता
हर जन्मा बालक है रोता हुआ आता
परिवार जनों का मन ख़ुश हुआ जाता
खेल खेलता हर क्षण यह विधाता
अन्त में हर कोई रोता रुलाता जाता
सिकीलधी
मगर न समझा, मगर न जाना
यह जन्मदिन तो बस है एक बहाना…..
bahut hi khubsurati se likha hai……..pratyek khushi apne hone ka ahshaas dilaati hai……saath hi ye bhi ki ek din ye khushi dhundhli ho jaayegi jab nayee khushi aayegi……ham aise hi ek din shayad es duniyan ki dhundhli khushiyon ko chhod nayee khushi ki talash men naye jishm rupi kapde badalne nikal padte hain……….
jab aate hain to ham rote hain log hanste hain,
aur jaate hain to log rote hain………bunde to meri bhi aankhon men hoti hai….magar un bundon ki hakikat kaun jaane.
LikeLiked by 1 person
धन्यवाद। क्या ख़ूब टिप्पणी की है आपने।
LikeLike