रक्षा-बन्धन का वार

रक्षा बन्धन का वार

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लो फिर चला आया
वह प्रेम प्यार का साया
बहन व भाई का त्यौहार
हर्षित हुआ मन फिर एक बार
जब आया रक्षा बन्धन का वार

बहन ने परोसे ख़ूब मिष्ठान
मॉं ने भी बनाए विशेष पकवान
थाली सजाई आरती वाली
दीप जलाया उजियारे वाला
टीका करती हर बहन भाई का

कुमकुम अक्षत से माथा सँवारती
करती आरती अपने भैया की
उसके भले की कामना वह करती
मंगल गीत बजता हर्षित स्वर में
भाई की कलाई धागों से सजती

रंग बिरंगे धागे यह प्रेम रंग के
रिश्तों में मिठास भर लाते
नई उमंग से प्रण लेता हर भाई
करेगा राखी वाले धागों की भरपाई
रक्षक बना रहेगा हर बहन का
धागों भरी कलाई लेकर क़सम है खाई

पग छू बहन के आशीष माँगता
बहन भावपूर्ण हो लेती बलाई
माथा चूम लेती फिर भाई का
बहन के भीतर मॉं देती दिखाई
सौग़ात जब अपने हाथों वह देता
भैया में दिखती प्यारे पिता की परछाईं
सिकीलधी

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